मार लाता है जूतियाँ दो चार
''जो तिरे आस्ताँ से उठता है''
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अपने दम से है ज़माने में घोटालों का वजूद
जब हुआ काले का गोरे से मिलाप
बुक़रात बहुत खाता था
जल गया कौन मेरे हँसने पर
छछूंदर
दूसरी ने जो सँभाली चप्पल
कहा इठला के उस ने आइए ना
रौशन ख़याली
अभी भूक से एक चूहा मरा है
दबाना शर्त है बजते हैं सारे
लंगोटी छीन ली
झूट है दिल न जाँ से उठता है