मुख़्तार सिद्दीक़ी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुख़्तार सिद्दीक़ी

मुख़्तार सिद्दीक़ी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुख़्तार सिद्दीक़ी
नाममुख़्तार सिद्दीक़ी
अंग्रेज़ी नामMukhtar Siddiqui
जन्म की तारीख1917
मौत की तिथि1972

क़र्या-ए-वीराँ

सहर-ए-अज़ल को जो दी गई वही आज तक है मुसाफ़िरी

रात के बाद वो सुब्ह कहाँ है दिन के बाद वो शाम कहाँ

फेरा बहार का तो बरस दो बरस में है

नूर-ए-सहर कहाँ है अगर शाम-ए-ग़म गई

मेरी आँखों ही में थे अन-कहे पहलू उस के

मैं तो हर धूप में सायों का रहा हूँ जूया

क्या क्या पुकारें सिसकती देखीं लफ़्ज़ों के ज़िंदानों में

कभी फ़ासलों की मसाफ़तों पे उबूर हो तो ये कह सुकूँ

जिन ख़यालों के उलट फेर में उलझीं साँसें

इबरत-आबाद भी दिल होते हैं इंसानों के

बस्तियाँ कैसे न मम्नून हों दीवानों की

रात की बात

परछाइयाँ

वही इक पुकार वही फ़ुग़ाँ मिरी मोहर-ए-दीदा-ओ-लब में है

थी तो सही पर आज से पहले ऐसी हक़ीर फ़क़ीर न थी

तिरे जल्वे तेरे हिजाब को मेरी हैरतों से नुमू मिली

शोख़ थे रंग हर इक दौर में अफ़्सानों के

रात के बाद वो सुब्ह कहाँ है दिन के बाद वो शाम कहाँ

फिर बहार आई है फिर जोश में सौदा होगा

नूर-ए-सहर कहाँ है अगर शाम-ए-ग़म गई

मौत को ज़ीस्त तरसती है यहाँ

की शब-ए-हश्र मिरी शाम-ए-जवानी तुम ने

ध्यान की मौज को फिर आइना-सीमा कर लें

बस्तियाँ कैसे न मम्नून हों दीवानों की

आख़िर दिल की पुरानी लगन कर के ही रहेगी फ़क़ीर हमें

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