क्या क्या पुकारें सिसकती देखीं लफ़्ज़ों के ज़िंदानों में
चुप ही की तल्क़ीन करे है ग़ैरत-मंद ज़मीर हमें
Anwar Masood
Wasi Shah
Habib Jalib
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Gulzar
Rahat Indori
Love Poetry
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Sharabi Poetry
Friends Poetry
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थी तो सही पर आज से पहले ऐसी हक़ीर फ़क़ीर न थी
शोख़ थे रंग हर इक दौर में अफ़्सानों के
सहर-ए-अज़ल को जो दी गई वही आज तक है मुसाफ़िरी
नूर-ए-सहर कहाँ है अगर शाम-ए-ग़म गई
मौत को ज़ीस्त तरसती है यहाँ
रात के बाद वो सुब्ह कहाँ है दिन के बाद वो शाम कहाँ
फिर बहार आई है फिर जोश में सौदा होगा
क़र्या-ए-वीराँ
इबरत-आबाद भी दिल होते हैं इंसानों के
रात की बात