मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल

मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल
नाममुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल
अंग्रेज़ी नामMunawar Khan Ghafil

ज़ुल्फ़-ए-पुर-पेच के सौदे में अजब क्या इम्काँ

वो सुबह को इस डर से नहीं बाम पर आता

वो हवा-ख़्वाह-ए-चमन हूँ कि चमन में हर सुब्ह

वो आइना-तन आईना फिर किस लिए देखे

तेज़ रखियो सर-ए-हर-ख़ार को ऐ दश्त-ए-जुनूँ

तर्क-ए-शराब भी जो करूँगा तो मोहतसिब

सितारे गुम हुए ख़ुर्शीद निकला

सताना क़त्ल करना फिर जलाना

परवाने के हुज़ूर जलाया न शम्अ' को

निकला न दाग़-ए-दिल से हमारा तो कोई काम

मर्तबा माशूक़ का आशिक़ से बाला-दस्त है

लुत्फ़ तब अमर्द-परस्ती का है बाग़-ए-ख़ुल्द में

लैलतुल-क़द्र है हर शब उसे हर रोज़ है ईद

क्या ख़बर है हम से महजूरों की उन को रोज़-ए-ईद

कूचा-ए-जानाँ मैं यारो कौन सुनता है मिरी

ख़त-नवेसी ये है तो मुश्ताक़ो

कौन दरिया-ए-मोहब्बत से उतर सकता है पार

जी में आता है मय-कशी कीजे

इस्लाम का सुबूत है ऐ शैख़ कुफ़्र से

हक़्क़-ए-मेहनत उन ग़रीबों का समझते गर अमीर

गुलशन-ए-इश्क़ का तमाशा देख

फ़रियाद की आती है सदा सीने से हर दम

इक बोसा माँगता हूँ मैं ख़ैरात-ए-हुस्न की

दुश्मन के काम करने लगा अब तो दोस्त भी

बरसों ख़याल-ए-यार रहा कुछ खिचा खिचा

बा'द मरने के मिरी क़ब्र पे आया 'ग़ाफ़िल'

अपने मजनूँ की ज़रा देख तो बे-परवाई

अगर उर्यानी-ए-मजनूँ पे आता रहम लैला को

आशिक़ को न ले जाए ख़ुदा ऐसी गली में

आए कभी तो दश्त से वो शहर की तरफ़

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