मैं, वो और रात
कमरे में ख़ामोशी है और बाहर रात बहुत काली है
ऊँचे ऊँचे पेड़ों पर सियाही ने छावनी डाली है
तेज़ हवा कहती है पल में बरखा आने वाली है
वो सोला-सिंगार किए अपनी ही सोच में खोई हुई है
साँसों में वो गहरा पन है जैसे बे-सुध सोई हुई है
दिल में सौ अरमान हैं लेकिन मेरी सम्त निगाह नहीं है
यूँ बैठी है जैसे उस के दिल में किसी की चाह नहीं है
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