चारों सम्त अंधेरा घुप है और घटा घनघोर
वो कहती है कौन
मैं कहता हूँ मैं
खोलो ये भारी दरवाज़ा
मुझ को अंदर आने दो
उस के बाद इक लम्बी चुप और तेज़ हवा का शोर
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Habib Jalib
Wasi Shah
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Allama Iqbal
Anwar Masood
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वो जिस को मैं समझता रहा कामयाब दिन
अपने घरों से दूर बनों में फिरते हुए आवारा लोगो
निगार-ख़ाना
किसी को अपने अमल का हिसाब क्या देते
इक और दरिया का सामना था 'मुनीर' मुझ को
रात इक उजड़े मकाँ पर जा के जब आवाज़ दी
इक आलम-ए-हिज्राँ ही अब हम को पसंद आया
जो देखे थे जादू तिरे हात के
ख़ुमार-ए-शब में उसे मैं सलाम कर बैठा
नशेब-ए-वहम फ़राज़-ए-गुरेज़-पा के लिए
अपना तो ये काम है भाई दिल का ख़ून बहाते रहना
हक़ीक़त