मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
नाम | मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता |
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अंग्रेज़ी नाम | Munshi Khairati Laal Shagufta |
वो हवा-ख़्वाह-ए-नसीम-ए-ज़ुल्फ़ हूँ मैं तीरा-बख़्त
सरिश्क-ए-चश्म दिखाते हैं गर्मियाँ अपनी
साफ़ क्या हो सोहबत-ए-ज़ाहिर से बातिन का ग़ुबार
रोता हूँ मैं तसव्वुर-ए-ज़ुल्फ़-ए-सियाह में
न शरमाओ आँखें मिला कर तो देखो
मुझ को रोते देख कर पास आए वो तफ़्हीम को
मिरी जानिब को करवट ले के गर मुझ से लिपट जाओ
मैं वो शैदा-ए-गेसू हूँ कि अक्सर मौसम-ए-गुल में
जो हुस्न-ओ-इश्क़ का हम-वज़्न इम्तिहाँ ठहरा
हट न कर ऐ दुख़्त-ए-रज़ बेताबियाँ बढ़ जाएँगी
दिल है निसार मर्दुमक-ए-चश्म-ए-दोस्त पर
देखो निगाह-ए-शौक़ से मेरी तरफ़ मुझे
ब-शक्ल-ए-नाख़ुन-ए-अंगुश्त सर कटाने से
अदब बख़्शा है ऐसा रब्त-ए-अल्फ़ाज़-ए-मुनासिब ने
अदब बख़्शा है ऐसा रब्त-ए-अल्फ़ाज़-ए-मुनासिब ने
उस बुत को दिल दिखा के कलेजा दिखा दिया
नीम-जाँ हूँ ज़िंदगी दूद-ए-चराग़-ए-कुश्ता है
मिसरे पे उन के मिस्रा-ए-क़द का गुमाँ हुआ
मज़मून-ए-इश्क़ ज़ेहन-ए-सितमगर में आ गया
हो अगर मद्द-ए-नज़र गुलशन में ऐ गुलफ़ाम रक़्स
गर तअ'ल्ली पर है वहम-ए-इम्तिहान-ए-मय-फ़रोश
दिखा ऐ नाख़ुन-ए-ग़म लुत्फ़-ए-बाहम ऐसे सामाँ पर