मुर्तज़ा बिरलास कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुर्तज़ा बिरलास

मुर्तज़ा बिरलास कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुर्तज़ा बिरलास
नाममुर्तज़ा बिरलास
अंग्रेज़ी नामMurtaza Birlas
जन्म की तारीख1934

मुझे की गई है ये पेशकश कि सज़ा में होंगी रियायतें

माना कि तेरा मुझ से कोई वास्ता नहीं

चेहरे की चाँदनी पे न इतना भी मान कर

ज़रा सी बात पे नाराज़गी अगर है यही

ये मरहले भी मोहब्बत के बाब में आए

वैसे तुम्हें तो आता नज़र सब दुरुस्त है

वअ'दा जो था निबाह का तुम ने वफ़ा नहीं किया

उम्र भर आँखों का दरवाज़ा खुला रहना ही था

तुम इक ऐसे शख़्स को पहचानते हो या नहीं

तुम अगर चाहो कभी बिफरा समुंदर देखना

सारे ज़ालिम अगर सफ़-ब-सफ़ हो गए

साक़ी-गरी का फ़र्ज़ अदा कर दिया गया

सादगी यूँ आज़माई जाएगी

सदा ये किस की है जो दूर से बुलाए मुझे

नींद भी तेरे बिना अब तो सज़ा लगती है

नाम भी अच्छा सा था चेहरा भी था महताब सा

नहर जिस लश्कर की निगरानी में तब थी अब भी है

मिलते ही ख़ुद को आप से वाबस्ता कह दिया

मौज-दर-मौज नज़र आता था सैलाब मुझे

किस किस का मुँह बंद करोगे किस किस को समझाओगे

काश बादल की तरह प्यार का साया होता

जुनूँ का ज़िक्र मिरा आम हो गया तो क्या

जीते-जी मेरे हर इक मुझ पे ही तन्क़ीद करे

जिस को देखो ज़र्द चेहरा आँख पथराई हुई

जब ज़रा हुई आहट शाख़ पर हिले पत्ते

हम कि तजदीद-ए-अहद-ए-वफ़ा कर चले आबरू-ए-जुनूँ कुछ सिवा कर चले

हम ही नहीं जो तेरी तलब में डेरे डेरे फिरते हैं

हम-ज़मीरों से जो भटकाए वो एज़ाज़ न दे

हमारे क़ौल ओ अमल में तज़ाद कितना है

ग़ैर के आगे ये सर ख़म देखिए कब तक रहे

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