मुसव्विर सब्ज़वारी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुसव्विर सब्ज़वारी (page 2)

मुसव्विर सब्ज़वारी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुसव्विर सब्ज़वारी (page 2)
नाममुसव्विर सब्ज़वारी
अंग्रेज़ी नामMusavvir Sabzwari
जन्म की तारीख1932
मौत की तिथि2002

शहर का रोग है जिस सम्त भी बस जाएगा तू

पहचान का असासा वो जब हार आएगा

मैं मुन्हरिफ़ था जिस से हर्फ़-ए-इंहिराफ की तरह

मैं एक पल की था ख़ुश्बू किधर निकल आया

मैं आँधी में रेज़ा रेज़ा इक फूल चुन रहा हूँ

लहू-लुहान था शाख़-ए-गुलाब काट के वो

लगा है ऐसा कोई कासा-ए-सवाली हों

कनार-ए-आब हवा जब भी सनसनाती है

कई ज़मानों के दरिया-ए-नील छोड़ गया

कड़े हैं कोस सफ़र दूर का ज़रूरी है

जो ख़स-ए-बदन था जला बहुत कई निकहतों की तलाश में

जो गया यहाँ से इसी मकान में आएगा

जिस्म अपना है कोई और न साया अपना

जंगल मुदाफ़अत के हलकान हो गए हैं

हुसैन ही था जो प्यासा उठा फ़ुरात से वो

हवा रह में दिए ताक़ों में मद्धम हो गए हैं

हर साँस में मिस्मार खंडर टूटते रहना

हमारी तहरीरें वारदातें बहुत ज़माने के बाद होंगी

है वहम जैसे कोई नक़्श ये दुहाई दे

घिरा हूँ दो क़ातिलों की ज़द में वजूद मेरा न बच सकेगा

इक कुतुब-ख़ाना हूँ अपने दरमियाँ खोले हुए

देखो कोई ख़्वाब दिन ढले का

बिगड़ते बनते दाएरे सवाल सोचते रहे

बराबर ख़्वाब से चेहरों की हिजरत देखते रहना

बदन के दीवार-ओ-दर में इक शय सी मर गई है

आँखें यूँ बरसीं पैराहन भीग गया

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