सजनी की आँखों में छुप कर जब झाँका
बिन होली खेले ही साजन भीग गया
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कनार-ए-आब हवा जब भी सनसनाती है
शहर का रोग है जिस सम्त भी बस जाएगा तू
मैं एक पल की था ख़ुश्बू किधर निकल आया
देखो कोई ख़्वाब दिन ढले का
न सोचो तर्क-ए-तअल्लुक़ के मोड़ पर रुक कर
जो ख़स-ए-बदन था जला बहुत कई निकहतों की तलाश में
ख़त्म होने दे मिरे साथ ही अपना भी वजूद
तबाह कर गया सब को मिरे घराने का
रिश्तों का बोझ ढोना दिल दिल में कुढ़ते रहना
मैं आँधी में रेज़ा रेज़ा इक फूल चुन रहा हूँ
फ़ैसला थे वक़्त का फिर बे-असर कैसे हुए
जिसे मैं छू नहीं सकता दिखाई क्यूँ वो देता है