मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
नाममुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
अंग्रेज़ी नामMushafi Ghulam Hamdani
जन्म की तारीख1751
मौत की तिथि1824
जन्म स्थानAmroha

ज़ीं-साज़ी अगर आती मुझे मैं तो मिरी जाँ

ज़ि-बस ख़ून-ए-ग़लीज़ आँखों से आया

ज़ि-बस हम को निहायत शौक़ है अमरद-परस्ती का

ज़माने का चलन यकसाँ नहीं कुछ

ज़ालिम ख़ुदा के वास्ते बैठा तो रह ज़रा

ज़ख़्म-ए-शमशीर-ए-निगह हैफ़ कि अच्छा न हुआ

यूँ है डलक बदन की उस पैरहन की तह में

यूँ चश्म-ए-तर से चेहरे पर आँसू हुए रवाँ

ये ज़माना वो है जिस में हैं बुज़ुर्ग ओ ख़ुर्द जितने

ये रोज़ ढूँढ लाए है इक ख़ूब-रू नया

ये क्या सुलूक किया तू ने मुझ से दस्त-ए-जुनूँ

ये कू-ए-मय-फ़रोश में रौला हुआ कि रात

ये कब ख़याल में लाते हैं ताज-ए-शाही को

ये गुम हुए हैं ख़याल-ए-विसाल-ए-जानाँ में

यारान-ए-सुख़न-गो की है वो कंपनी अपनी

या-रब कभी वो दिन हो कि ख़ल्वत में वो सनम

यार रोते रहे सब रूह ने परवाज़ किया

यार होता है मिरा लाला-अज़ार एक न एक

याँ तक किया मैं गिर्या कि ख़ूबाँ के इश्क़ में

याँ रख़्ना-हा-ए-सीना कुदूरत से हैं फटे

यक क़तरा ख़ूँ बग़ल में है दिल मिरी सो इस को

वो जो आशिक़ हैं अपने हाथों से

वो आप कर रही है मुदाम उस की जुस्तुजू

वो आहू-ए-रमीदा मिल जाए तीरा-शब गर

वारफ़्ता हूँ ऐसा में कि कूचे में बुताँ के

वाँ रसाई ही नहीं मजनून-ए-सहरा-गर्द की

वाँ लाल फड़कता है अमीरों के क़फ़स में

वादों ही पे हर रोज़ मिरी जान न टालो

वादा-ए-वस्ल दिया ईद की शब हम को सनम

उट्ठा गया फ़लक पे गिरा ख़ाक में मिला

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