जा जो इक दिन मिल गई पहलू में शोख़ी देखियो
चुटकियाँ ले ले में नीला कर दिया पहलू-ए-दोस्त
Wasi Shah
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Javed Akhtar
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Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
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Gulzar
Allama Iqbal
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ना-तवानी के सबब याँ किस से उट्ठा जाए है
कहूँ तो किस से कहूँ अपना दर्द-ए-दिल मैं ग़रीब
यूँ चलते हैं लोग राह ज़ालिम
उस ने गाली मुझे दी हो के इताब-आलूदा
ज़ुल्मात-ए-शब-ए-हिज्र की आफ़ात है और तू
उस शाहिद-ए-निहाँ का कुश्ता हूँ मैं कि जिस ने
मैं तेरे डर से न देखा उधर बहुत शब-ए-वस्ल
शब-ए-हिज्र सहरा-ए-ज़ुल्मात निकली
ले लिया प्यार से अक्स अपने का झुक कर बोसा
मैं वो गर्दन-ज़दनी हूँ कि तमाशे को मिरे
बैठा था आ के क़ैस तो लैला के दर पे लेक
माशूक़ा-ए-गुल नक़ाब में है