हज़ारों हाथों को अपनी जानिब बुलंद पा कर
वो समझा सब उसे सलाम कर रहे हैं
और ख़िराज-अक़ीदत पेश कर रहे हैं
वो ख़ुश हुआ ओर आगे बढ़ गया
उन बे-शुमार आँखों में झाँके बग़ैर
जिन में घोर तिरस्कार भरा था
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मिट्टी मौसम और रंग
मैं
लहु में उतरता हुआ मौसम
शाइ'र
इंतिज़ार के बा'द
न मेरा नाम मेरा है
क़लम
लीडर
आईने के सामने
एहसास-ए-जुर्म
मुझ से पूछो
तरदीद