मुस्तफ़ा शहाब कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुस्तफ़ा शहाब

मुस्तफ़ा शहाब कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुस्तफ़ा शहाब
नाममुस्तफ़ा शहाब
अंग्रेज़ी नामMustafa Shahab

ज़ेहन में याद के घर टूटने लगते हैं 'शहाब'

सुब्ह तक जाने कहाँ मुझ को उड़ा कर ले जाए

शायद वो भूली-बिसरी न हो आरज़ू कोई

मैं सच से गुरेज़ाँ हूँ और झूट पे नादिम हूँ

मैं भी शायद आप को तन्हा मिलों

मैं और मेरा शौक़-ए-सफ़र साथ हैं मगर

ख़ौफ़ इक बुलंदी से पस्तियों में रुलने का

कार-ए-ज़िंदगानी के शोर-ओ-शर में मुद्दत से

कहा था मैं ने खो कर भी तुझे ज़िंदा रहूँगा

इस्तिआरे ज़मीन से जाएँ

इस तरह सजा रक्खे हैं मैं ने दर-ओ-दीवार

हम में और परिंदों में फ़र्क़ सिर्फ़ इतना है

होते होते मैं पहुँच जाता हूँ अपने आप तक

हक़ीक़त को तमाशे से जुदा करने की ख़ातिर

गो तर्क-ए-तअल्लुक़ में भी शामिल हैं कई दुख

दिल सँभाले नहीं सँभलता है

दर कुंज-ए-सदा-बंद का खोलेंगे किसी रोज़

बिखरा बिखरा सा साज़-ओ-सामाँ है

बिछड़ा वो मुझ से ऐसे न बिछड़े कभी कोई

अपनी कश्ती सर पे रख कर चल रहे हैं हम 'शहाब'

ऐसा भी कभी हो मैं जिसे ख़्वाब में देखूँ

वो तमाशा आप की जादू-बयानी से हुआ

उसे देखा तो हर बे-चेहरगी कासा उठा लाई

रात रौशन न हुई काहकशाँ होते हुए

क़लम भी रौशनाई दे रहा है

क़दम क़दम पर तुम्हारी यूँ तो इनायतें भी बहुत हुइ हैं

पुराने घर में नया घर बसाना चाहता है

फूल ने मुरझाते मुरझाते कहा आहिस्ता से

कुछ तो ऐसे हैं कि जिन से फिर मिला जाता नहीं

किसी ने भी उसे देखा नहीं है

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