Ghazals of Mustafa Shahab

Ghazals of Mustafa Shahab
नाममुस्तफ़ा शहाब
अंग्रेज़ी नामMustafa Shahab

वो तमाशा आप की जादू-बयानी से हुआ

उसे देखा तो हर बे-चेहरगी कासा उठा लाई

रात रौशन न हुई काहकशाँ होते हुए

क़लम भी रौशनाई दे रहा है

क़दम क़दम पर तुम्हारी यूँ तो इनायतें भी बहुत हुइ हैं

पुराने घर में नया घर बसाना चाहता है

फूल ने मुरझाते मुरझाते कहा आहिस्ता से

कुछ तो ऐसे हैं कि जिन से फिर मिला जाता नहीं

किसी ने भी उसे देखा नहीं है

कैसे पता चलेगा अगर सामना न हो

जब उस ने आने का इक दिन इधर इरादा किया

हम किसी साया-ए-दीवार में आ बैठे हैं

इक शम्अ का साया था कि मेहराब में डूबा

इक इंक़लाब कि यकसर था उस के जाते ही

धूप सी उम्र बसर करना है

छू के गुज़रा मुझे ज़माना सा

अक्स देखा तो लगा कोई कमी है मुझ में

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