क़लम भी रौशनाई दे रहा है
मुझे अपनी कमाई दे रहा है
मैं दरिया दे रहा हूँ कश्तियों को
वो मुझ को ना-ख़ुदाई दे रहा है
कोई ख़ामोश सा तूफ़ाँ हवा का
परिंदों को सुनाई दे रहा है
मिरी नज़रों से ओझल है मगर वो
जिधर देखूँ दिखाई दे रहा है
'शहाब' उड़ कर चराग़ों तक तो पहुँचो
अगर कुछ कुछ सुझाई दे रहा है