हक़ीक़त को तमाशे से जुदा करने की ख़ातिर
उठा कर बारहा पर्दा गिराना पड़ गया है
Mir Taqi Mir
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Habib Jalib
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Gulzar
Jaun Eliya
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कहा था मैं ने खो कर भी तुझे ज़िंदा रहूँगा
क़लम भी रौशनाई दे रहा है
पुराने घर में नया घर बसाना चाहता है
इस्तिआरे ज़मीन से जाएँ
गो तर्क-ए-तअल्लुक़ में भी शामिल हैं कई दुख
होते होते मैं पहुँच जाता हूँ अपने आप तक
इस तरह सजा रक्खे हैं मैं ने दर-ओ-दीवार
जब उस ने आने का इक दिन इधर इरादा किया
ज़ेहन में याद के घर टूटने लगते हैं 'शहाब'
ख़ौफ़ इक बुलंदी से पस्तियों में रुलने का
सुब्ह तक जाने कहाँ मुझ को उड़ा कर ले जाए
मैं और मेरा शौक़-ए-सफ़र साथ हैं मगर