तेरी आँखों के दो सितारे थे
जिन पे हम दो जहान हारे थे
सारी तारीफ़ थी उसे ज़ेबा
जितने बोहतान थे हमारे थे
जितनी आँखें थीं सारी मेरी थीं
जितने मंज़र थे सब तुम्हारे थे
दिन वही उम्र भर का हासिल हैं
जो तिरी याद में गुज़ारे थे
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बिखरा है कई बार समेटा है कई बार
हर सच बात में हम दोनों हैं
इश्क़ वो चार सू सफ़र है जहाँ
ए'तिराफ़
घड़ी जीता घड़ी मरता रहा हूँ
शुऊर-ए-ज़ात के साँचे में ढलना चाहता हूँ
हो गए हम शिकार फूलों के
या हुस्न है ना-वाक़िफ़-ए-पिंदार-ए-मोहब्बत
मैं ख़ुद को सामने तेरे बिठा कर
किसी महल में न शाहों की आन-बान में है
मोहब्बत में ख़ुदा भी मुब्तला है