किसी के फ़र्ज़ करने से
अगर फ़ितरत बदल सकती
तो फिर शायद
मोहब्बत जीत सकती थी
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गिन रहे हैं दिल-ए-नाकाम के दिन
वक़्त का सिलसिला नहीं रुकता
क़ुसूर
किसी महल में न शाहों की आन-बान में है
एक मंज़िल है मुख़्तलिफ़ राहें
मुझे रिफ़अ'तों का ख़ुमार था सो नहीं रहा
हर सच बात में हम दोनों हैं
वो
चश्म-ओ-दिल साहब-ए-गुफ़्तार हुए जाते हैं
मंज़िल है कि इक रस्ता-ए-दुश्वार में गुम है
आवेज़े
सितारे