हुदूद-ए-वक़्त के दरवाज़े मुंतज़िर हैं 'नसीम'
कि तू ये फ़ासले कर के उबूर दस्तक दे
Allama Iqbal
Rahat Indori
Gulzar
Wasi Shah
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(351) Peoples Rate This
जो याद-ए-यार से गुफ़्त-ओ-शुनीद कर ली है
कभी तो सर्द लगा दोपहर का सूरज भी
क़बा-ए-जाँ पुरानी हो गई क्या
ब-नाम-ए-अम्न-ओ-अमाँ कौन मारा जाएगा
दिये अब शहर में रौशन नहीं हैं
सफ़र का मरहला-ए-सख़्त ही ग़नीमत था
लफ़्ज़ भी जिस अहद में खो बैठे अपना ए'तिबार
शिकस्त
सूरज के हम-सफ़र हैं हमारी उमंग ये
थके हुओं को जो मंज़िल कठिन ज़ियादा हुई