नातिक़ गुलावठी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का नातिक़ गुलावठी

नातिक़ गुलावठी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का नातिक़ गुलावठी
नामनातिक़ गुलावठी
अंग्रेज़ी नामNatiq Gulavthi

ज़िक्र-ए-शराब-ए-नाब पे वाइ'ज़ उखड़ गया

ज़ाहिर न था नहीं सही लेकिन ज़ुहूर था

ये ख़ुदा की शान तो देखिए कि ख़ुदा का नाम ही रह गया

वहाँ से ले गई नाकाम बदबख़्तों को ख़ुद-कामी

वफ़ा पर नाज़ हम को उन को अपनी बेवफ़ाई पर

उसे पा-ब-गिल न रखता जो ख़याल-ए-तीरा-बख़्ती

उम्र भर का साथ मिट्टी में मिला

तुम्हारी बात का इतना है ए'तिबार हमें

तुम ऐसे अच्छे कि अच्छे नहीं किसी के साथ

तुम अगर जाओ तो वहशत मिरी खा जाए मुझे

तो हमें कहता है दीवाना को दीवाने सही

तरीक़-ए-दिलबरी काफ़ी नहीं हर-दिल-अज़ीज़ी को

सुब्ह-ए-पीरी में फिरा शाम-ए-जवानी का गया

शैख़ जज़ा-ए-कार-ए-ख़ैर जो बता रहा है आज

सर से दयार-ए-ग़म के सनीचर उतार दे

सब कुछ मुझे मुश्किल है न पूछो मिरी मुश्किल

सब को ये शिकायत है कि हँसता नहीं 'नातिक़'

रिया-कारी के सज्दे शैख़ ले बैठेंगे मस्जिद को

रस्म-ए-तलब में क्या है समझ कर उठा क़दम

रक्खी हुई है सारी ख़ुदाई तिरे लिए

रखता है तल्ख़-काम ग़म-ए-लज़्ज़त-ए-जहाँ

रहती है शम्स-ओ-क़मर को तिरे साए की तलाश

रह-नवरदान-ए-वफ़ा मंज़िल पे पहुँचे इस तरह

रह के अच्छा भी कुछ भला न हुआ

फिर चाक-दामनी की हमें क़द्र क्यूँ न हो

पहुँचाएगा नहीं तू ठिकाने लगाएगा

पहली बातें हैं न पहले की मुलाक़ातें हैं

पाबंद-ए-दैर हो के भी भूले नहीं हैं घर

नज़र आता नहीं अब घर में वो भी उफ़ रे तन्हाई

नाज़ उधर दिल को उड़ा लेने की घातों में रहा

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