इंतिज़ाम-ए-रोज़-ए-इशरत और कर ऐ ना-मुराद
ईद आती ही रही माह-ए-सियाम आ ही गया
Mohsin Naqvi
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Habib Jalib
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Gulzar
Jaun Eliya
Wasi Shah
Parveen Shakir
Anwar Masood
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दोस्ती किस की रही याद वो किस पर भूला
ऐ निगाह-ए-मस्त उस का नाम है कैफ़-ए-सुरूर
वस्फ़-ए-जमाल-ए-ज़ौक़ है अहल-ए-निगाह का
क्या करूँ ऐ दिल-ए-मायूस ज़रा ये तो बता
शैख़ जज़ा-ए-कार-ए-ख़ैर जो बता रहा है आज
क्या इरादे हैं वहशत-ए-दिल के
ज़ाहिर न था नहीं सही लेकिन ज़ुहूर था
हिचकियों पर हो रहा है ज़िंदगी का राग ख़त्म
दूसरों को क्या कहिए दूसरी है दुनिया ही
नाज़ उधर दिल को उड़ा लेने की घातों में रहा
ढूँडती है इज़्तिराब-ए-शौक़ की दुनिया मुझे
रह के अच्छा भी कुछ भला न हुआ