नज़र बर्नी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का नज़र बर्नी

नज़र बर्नी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का नज़र बर्नी
नामनज़र बर्नी
अंग्रेज़ी नामNazar Barni
जन्म स्थानDelhi

अब बच के कहाँ जाए हर इक सम्त है दीवार

ज़बाँ क्यूँ हो?

सो अब भी है

शिकवा-ए-क्लर्क

ज़बाँ पर शिकवा-ए-दार-ओ-रसन लाया नहीं जाता

याद-ए-माज़ी ये क्या किया तू ने

तुम को नहीं है याद अभी कल की बात है

न हम ने आँख लड़ाई न ख़्वाब में देखा

लेता हूँ तेरा नाम हर इक नाम से पहले

जुनून-ए-शौक़ में महव-ए-तमाशा हो गए हम तुम

इश्क़ की दास्तान क्या कहिए

हुस्न को बे-नक़ाब होने दो

है अब तो हसीनाओं का हल्क़ा मिरे आगे

ग़म का हामिल न कुछ ख़ुशी का है

फ़ुर्क़त का फ़ुसूँ फैल गया शाम से पहले

बे-ज़बानी ज़बान होती है

अपने अश्कों की ये बरसात किसे पेश करूँ

अजब इक वक़्त गुलशन में ये पैग़ाम-ए-बहार आया

अब हस्ती-ए-ख़राब का आलम सँवर गया

आँखों को अश्क-बार किया क्या बुरा किया

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