आ दोस्त साथ आ दर-ए-माज़ी से माँग लाएँ
वो अपनी ज़िंदगी कि जवाँ भी हसीं भी थी
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ले के दिल कहते हो उल्फ़त क्या है
बरसों से तिरा ज़िक्र तिरा नाम नहीं है
तू ने वो सोज़ दिया है कि इलाही तौबा
कितने पुर-हौल अँधेरों से गुज़र कर ऐ दोस्त
दिल में क्या क्या गुमाँ गुज़रते हैं
छुपे तो कैसे छुपे चमन में मिरा तिरा रब्त-ए-वालिहाना
ये दिल वालों से पूछो इस को दिल वाले समझते हैं
मौसम-ए-गुल है बादल छाए खनक रहे हैं पैमाने
बसर करे जो मुजाहिदाना हयात उसे दाइमी मिलेगी
वो दिन गुज़रे कि जब ये ज़िंदगानी इक कहानी थी
निगाहों से ना-आश्ना चंद जल्वे
मौज-ए-तख़य्युल गुल का तबस्सुम परतव-ए-शबनम बिजली का साया