कल जो ज़िक्र-ए-जाम-ओ-मीना आ गया
मेरी तौबा को पसीना आ गया
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आ दोस्त साथ आ दर-ए-माज़ी से माँग लाएँ
छुपे तो कैसे छुपे चमन में मिरा तिरा रब्त-ए-वालिहाना
यक़ीनन रहबर-ए-मंज़िल कहीं पर रास्ता भूला
शौक़ कितने फ़रेब देता है
बसर करे जो मुजाहिदाना हयात उसे दाइमी मिलेगी
ऐ अक़्ल साथ रह कि पड़ेगा तुझी से काम
अफ़सोस किसी से मिट न सकी इंसान के दिल की तिश्ना-लबी
कितने पुर-हौल अँधेरों से गुज़र कर ऐ दोस्त
तू ने वो सोज़ दिया है कि इलाही तौबा
वो दिन गुज़रे कि जब ये ज़िंदगानी इक कहानी थी
नाहीद ओ क़मर ने रातों के अहवाल को रौशन कर तो दिया
मौज-ए-तख़य्युल गुल का तबस्सुम परतव-ए-शबनम बिजली का साया