वो दिन गुज़रे कि जब ये ज़िंदगानी इक कहानी थी
मुझे अब हर कहानी ज़िंदगी मालूम होती है
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ये दिल वालों से पूछो इस को दिल वाले समझते हैं
छुपे तो कैसे छुपे चमन में मिरा तिरा रब्त-ए-वालिहाना
ऐ अक़्ल साथ रह कि पड़ेगा तुझी से काम
बसर करे जो मुजाहिदाना हयात उसे दाइमी मिलेगी
मौज-ए-तख़य्युल गुल का तबस्सुम परतव-ए-शबनम बिजली का साया
ये भी हुआ कि दर न तिरा कर सके तलाश
अफ़सोस किसी से मिट न सकी इंसान के दिल की तिश्ना-लबी
कल जो ज़िक्र-ए-जाम-ओ-मीना आ गया
कुछ हुस्न के फ़साने तरतीब दे रहा हूँ
कितने पुर-हौल अँधेरों से गुज़र कर ऐ दोस्त
बहार हो कि मौज-ए-मय कि तब्अ की रवानियाँ
मौसम-ए-गुल है बादल छाए खनक रहे हैं पैमाने