ये भी हुआ कि दर न तिरा कर सके तलाश
ये भी हुआ कि हम तिरे दर से गुज़र गए
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यक़ीनन रहबर-ए-मंज़िल कहीं पर रास्ता भूला
मौज-ए-तख़य्युल गुल का तबस्सुम परतव-ए-शबनम बिजली का साया
बहार हो कि मौज-ए-मय कि तब्अ की रवानियाँ
बरसों से तिरा ज़िक्र तिरा नाम नहीं है
क़फ़स भी है यहाँ सय्याद भी गुलचीं भी काँटे भी
आ दोस्त साथ आ दर-ए-माज़ी से माँग लाएँ
बसर करे जो मुजाहिदाना हयात उसे दाइमी मिलेगी
नाहीद ओ क़मर ने रातों के अहवाल को रौशन कर तो दिया
सुन ऐ कोह-ओ-दमन को सब्ज़ ख़िलअत बख़्शने वाले
कितने पुर-हौल अँधेरों से गुज़र कर ऐ दोस्त
दिल में क्या क्या गुमाँ गुज़रते हैं
ऐ अक़्ल साथ रह कि पड़ेगा तुझी से काम