ये दिल वालों से पूछो इस को दिल वाले समझते हैं
बिगाड़ आई हवा ज़ुल्फ़ें किसी की या सँवार आई
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क़फ़स भी है यहाँ सय्याद भी गुलचीं भी काँटे भी
निगाहों से ना-आश्ना चंद जल्वे
कल जो ज़िक्र-ए-जाम-ओ-मीना आ गया
कली की ख़ू है बहर-हाल मुस्कुराने की
वो दिन गुज़रे कि जब ये ज़िंदगानी इक कहानी थी
सुन ऐ कोह-ओ-दमन को सब्ज़ ख़िलअत बख़्शने वाले
दिल में क्या क्या गुमाँ गुज़रते हैं
ऐ अक़्ल साथ रह कि पड़ेगा तुझी से काम
छुपे तो कैसे छुपे चमन में मिरा तिरा रब्त-ए-वालिहाना
शौक़ कितने फ़रेब देता है
मौसम-ए-गुल है बादल छाए खनक रहे हैं पैमाने
तू ने वो सोज़ दिया है कि इलाही तौबा