ढूँडने वाले ग़लत-फ़हमी मैं थे
वो अना के साथ अपने सुर में था
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कुछ एहतियात परिंदे भी रखना भूल गए
दिलों के बीच की दीवार गिर भी सकती थी
वो गुलाबी बादलों में एक नीली झील सी
कितने ज़ेहनों को कर गया गुमराह
बोलते रहते हैं नुक़ूश उस के
हुस्न उतना एक पैकर मैं सिमट सकता नहीं
हम तिरी तल्ख़ गुफ़्तुगू सुन कर
पलक पलक सैल-ए-ग़म अयाँ है न कोई आहट न कोई हलचल
क्यूँ फ़लक-आश्ना किया था मुझे
नक़्श-ए-पा उस के रास्ता उस का
चाँद की कश्ती सजी है और मैं