प्रकाश फ़िक्री कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का प्रकाश फ़िक्री

प्रकाश फ़िक्री कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का प्रकाश फ़िक्री
नामप्रकाश फ़िक्री
अंग्रेज़ी नामParkash Fikri
जन्म की तारीख1930
मौत की तिथि2008
जन्म स्थानRanchi

यूँ तो अपनों सा कुछ नहीं इस में

मुर्दा पड़े थे लोग घरों की पनाह में

लर्ज़ां है किसी ख़ौफ़ से जो शाम का चेहरा

जिधर देखो लहू बिखरा हुआ है

जले मकानों में भूत बैठे बड़ी मतानत से सोचते हैं

ज़र्द पेड़ों पे शाम है गिर्यां

वो राब्ते भी अनोखे जो दूरियाँ बरतें

तेरी सदा की आस में इक शख़्स रोएगा

शबनम भीगी घास पे चलना कितना अच्छा लगता है

रंगीन ख़्वाब आस के नक़्शे जला भी दे

रफ़्ता रफ़्ता सब मनाज़िर खो गए अच्छा हुआ

पहाड़ों से उतरती शाम की बेचारगी देखें

मुझे तो यूँ भी इसी राह से गुज़रना था

किसी का नक़्श अंधेरे में जब उभर आया

ख़ुनुक हवा का ये झोंका शरार कैसे हुआ

काली रातों में फ़सील-ए-दर्द ऊँची हो गई

जिस का बदन गुलाब था वो यार भी नहीं

हवा से ज़र्द पत्ते गिर रहे हैं

एहसास-ए-ज़ियाँ चैन से सोने नहीं देता

दुश्मनी की इस हवा को तेज़ होना चाहिए

चाँदी जैसी झिलमिल मछली पानी पिघले नीलम सा

अजीब रुत है दरख़्तों को बे-ज़बाँ देखूँ

आँख पत्थर की तरह अक्स से ख़ाली होगी

आँधियाँ आती हैं और पेड़ गिरा करते हैं

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