मिसाल-ए-आईना यारो निखर गया कल शब
मिसाल-ए-आईना यारो निखर गया कल शब
अजीब सानेहा दिल पे गुज़र गया कल शब
बिसात-ए-दश्त पे यूँ चाँदनी थी रक़्स-कुनाँ
कि जैसे चाँद का हर ज़ख़्म भर गया कल शब
सियाह रात का वो राहिब-ए-चराग़-ब-कफ़
सुनो वो किर्मक-ए-शब-ताब भर गया कल शब
कुछ इतना चेहरा भयानक था ख़्वाब में उस का
कि अपने आप से 'पाशा' भी डर गया कल शब
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