प्रेम कुमार नज़र कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का प्रेम कुमार नज़र

प्रेम कुमार नज़र कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का प्रेम कुमार नज़र
नामप्रेम कुमार नज़र
अंग्रेज़ी नामPrem Kumar Nazar
जन्म की तारीख1936

उसी के ज़िक्र से हम शहर में हुए बदनाम

रख दी है उस ने खोल के ख़ुद जिस्म की किताब

में भी तलाश-ए-आब-ए-हवस में निकला हूँ

लफ़्ज़ छिन जाएँ मगर तहरीर हो रौशन जहाँ

कहें हैं रेख़्ता पंजाब में नज़र-साहिब

जी चाहता है हाथ लगा कर भी देख लें

हो रहा है पस-ए-दीवार भी कुछ

एक अंगड़ाई से सारे शहर को नींद आ गई

दिल-ए-तबाह की ईज़ा-परस्तियाँ मालूम

बहुत लम्बी मसाफ़त है बदन की

आएगी हर तरफ़ से हवा दस्तकें लिए

सुब्ह-दम

नज़्म

मेरा पसंदीदा मंज़र

ज़ात में कर्ब हो और कर्ब का इज़हार न हो

ये क्या गली है जहाँ डरते डरते जाते हैं

वक़्त क़रीब है फिर मंज़र के बदलने का

उस तरफ़ क्या है ये कुछ खुलता नहीं

ऊँट सब वापस फिरे आगे कोई सहरा न था

उम्र भर शौक़ का दफ़्तर लिक्खा

तबीबो चारागरो तुम से जो हुआ सो हुआ

सूरज चढ़ा तो दिल को अजब वहम सा हुआ

क़दम क़दम पर की रुस्वाई फिसला हर इक ज़ीने पर

पागल हवा के दोश पे जिंस-ए-गिराँ न रख

मैं नज़र से एक अंदाज़-ए-नज़र होता हुआ

कुछ न कुछ अहद-ए-मोहब्बत का निशाँ रह जाए

ख़ुश्क हो जाए न झरने वाला

खा जाएगा ये जान को आज़ार देखना

हर-चंद कि था हिज्र में अंदेशा-ए-जाँ भी

है इख़्तियार में तेरे न मेरे बस में है

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