नज़'अ की और भी तकलीफ़ बढ़ा दी तुम ने
कुछ न बन आया तो आवाज़ सुना दी तुम ने
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
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कभी कहा न किसी से तिरे फ़साने को
बाग़-ए-आलम में रहे शादी-ओ-मातम की तरह
दबा के क़ब्र में सब चल दिए दुआ न सलाम
अब तो मुँह से बोल मुझ को देख दिन भर हो गया
फ़लक ना-मेहरबाँ है मिल रहे हैं मेहरबाँ फिर भी
दिल अगर होता तो मिल जाता निशान-ए-आरज़ू
उन के जाते ही ये वहशत का असर देखा किए
सुरमे का तिल बना के रुख़-ए-ला-जवाब में
हटी ज़ुल्फ़ उन के चेहरे से मगर आहिस्ता आहिस्ता
मुझे बाग़बाँ से गिला ये है कि चमन से बे-ख़बरी रही
बोझ इतना भर गई थी रूह-ए-सुबुक निकल के
ख़त्म शब क़िस्सा-ए-मुख़्तसर न हुई