क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी (page 1)

क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी (page 1)
नामक़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी
अंग्रेज़ी नामQasim Ali Khan Afridi

रखता है अपने हुस्न पर वो दिल रुबा घमंड

मुझ को तो शराब से मस्ती है और

किसी का राग़-ए-मतालिब किसी का बाग़-ए-मुराद

ख़त्त-ए-आज़ादी लिखा था शोख़ ने फ़र्दा ग़लत

जिस तरह कूचे में तेरे फिरते हैं हम बर-तरफ़

यार का कूचा है मस्जूद-ए-ख़लाइक़ देख ले

शराब साक़ी-ए-कौसर से लीजो 'आफ़रीदी'

शैख़ मुझ को न डरा अपनी मुसलमानी थाम

नासेहा वा'ज़ जो कहता था तुझे बिन देखे

नर्गिसी चश्म दिखा कर के वो वहशत-ज़दा यार

मुझे ख़ुशी कि गिरफ़्तार मैं हुआ तेरा

मारा जावेगा भाग ऐ नासेह

लब-ए-शीरीं से अगर हो न तेरा लब शीरीं

ख़ुदा को सज्दा कर के मुब्तज़िल ज़ाहिद हुआ अब तो

काम है मतलब से चाहे कुफ़्र होवे या कि दीं

इश्क़ है ऐ दिल कठिन कुछ ख़ाना-ए-ख़ाला नहीं

है जुदा सज्दा की जा हिन्दू मुसलमाँ की मगर

बस नहीं चलता है वर्ना अपने मर जाने के साथ

अजब तरह की है दुनिया ब-रंग-ए-बू-क़लमूँ

ये मुश्त-ए-ख़ाक अपने को जहाँ चाहे तहाँ ले जा

फेर रोज़-ए-फ़िराक़-ए-यार आया

पारसा तू पारसाई पर न कर इतना ग़ुरूर

पाँच दिन को जो यहाँ पर आ गया

मोहब्बत मा-सिवा की जिस ने की गोरी कलोटी की

मातम-ए-रंज-ओ-अलम ग़म हैं बहम चारों एक

क्या फ़रोग़-ए-बज़्म उस मह-रू का शब सद-रंग था

कुफ़्र-ए-इश्क़ आया बदल मुझ मोमिन-ए-दीं-दार तक

कुछ अपने काम नहीं आवे जाम-ए-जम की किताब

कहाँ का नंग रहा और और कहाँ रहा नामूस

जो मेरा ले गया दिल कौन वो इंसान है क्या है

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