इश्क़ है ऐ दिल कठिन कुछ ख़ाना-ए-ख़ाला नहीं
रख दिलेराना क़दम ता तुझ को हो इमदाद-ए-दाद
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ऐ दिल अब इश्क़ की लै-गोई और चौगान में आ
कुछ अपने काम नहीं आवे जाम-ए-जम की किताब
पाँच दिन को जो यहाँ पर आ गया
फ़ासिक़ जो अगर आशिक़-ए-दीवाना हुआ तो क्या
बंदा-परवर जो न पछ्ताइएगा
अजब तरह की है दुनिया ब-रंग-ए-बू-क़लमूँ
हम ने तो उजाड़ और बस्ती देखी
अगर शम्अ हुए तो गल गए हम
जो मेरा ले गया दिल कौन वो इंसान है क्या है
जब किसी ने आन कर दिल से मिरे पुरख़ाश की
इस अर्ज़ के तख़्ते पर संसार है और मैं हूँ
बस नहीं चलता है वर्ना अपने मर जाने के साथ