ख़ुदा को सज्दा कर के मुब्तज़िल ज़ाहिद हुआ अब तो
तो जा कर मह-जबीं के आस्ताँ पे जुब्बा-साई कर
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Gulzar
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(320) Peoples Rate This
जता न मेरे तईं अपना तू हुनर वाइ'ज़
यार का कूचा है मस्जूद-ए-ख़लाइक़ देख ले
मातम-ए-रंज-ओ-अलम ग़म हैं बहम चारों एक
ये मुश्त-ए-ख़ाक अपने को जहाँ चाहे तहाँ ले जा
कहाँ का नंग रहा और और कहाँ रहा नामूस
बस नहीं चलता है वर्ना अपने मर जाने के साथ
पाँच दिन को जो यहाँ पर आ गया
किसी का राग़-ए-मतालिब किसी का बाग़-ए-मुराद
क्या फ़रोग़-ए-बज़्म उस मह-रू का शब सद-रंग था
अब्र साँ हर-चंद रक्खा चश्म को पुर-आब हम
जब किसी ने आन कर दिल से मिरे पुरख़ाश की
आशिक़-ए-सोख़्ता-दिल ख़त्त-ए-सनम दोनों एक