मारा जावेगा भाग ऐ नासेह
देख ये नाज़नीं सवार आया
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मोहब्बत मा-सिवा की जिस ने की गोरी कलोटी की
जी रहे या न रहे हर क़दम-ए-यार न छोड़
ख़त्त-ए-आज़ादी लिखा था शोख़ ने फ़र्दा ग़लत
नर्गिसी चश्म दिखा कर के वो वहशत-ज़दा यार
बस नहीं चलता है वर्ना अपने मर जाने के साथ
दर्द-ए-दिल का किसे करूँ इज़हार
जता न मेरे तईं अपना तू हुनर वाइ'ज़
पारसा तू पारसाई पर न कर इतना ग़ुरूर
अब्र साँ हर-चंद रक्खा चश्म को पुर-आब हम
यार का कूचा है मस्जूद-ए-ख़लाइक़ देख ले
है जुदा सज्दा की जा हिन्दू मुसलमाँ की मगर
मुझ को तो शराब से मस्ती है और