मुझे ख़ुशी कि गिरफ़्तार मैं हुआ तेरा
तो शाद हो कि है ऐसा शिकार असीर मिरा
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जिस तरह कूचे में तेरे फिरते हैं हम बर-तरफ़
ये मुश्त-ए-ख़ाक अपने को जहाँ चाहे तहाँ ले जा
कुछ अपने काम नहीं आवे जाम-ए-जम की किताब
मारा जावेगा भाग ऐ नासेह
बंदा-परवर जो न पछ्ताइएगा
किसी का राग़-ए-मतालिब किसी का बाग़-ए-मुराद
है जुदा सज्दा की जा हिन्दू मुसलमाँ की मगर
फ़ासिक़ जो अगर आशिक़-ए-दीवाना हुआ तो क्या
नासेहा वा'ज़ जो कहता था तुझे बिन देखे
अजब तरह की है दुनिया ब-रंग-ए-बू-क़लमूँ
अब्र साँ हर-चंद रक्खा चश्म को पुर-आब हम