नासेहा वा'ज़ जो कहता था तुझे बिन देखे
देखते ही तुझे फिर जान को खोते देखा
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ऐ दिल अब इश्क़ की लै-गोई और चौगान में आ
फेर रोज़-ए-फ़िराक़-ए-यार आया
अब्र साँ हर-चंद रक्खा चश्म को पुर-आब हम
इश्क़ की कोई अगर सीख ले गर मुझ से तमीज़
रखता है अपने हुस्न पर वो दिल रुबा घमंड
हम ने तो उजाड़ और बस्ती देखी
मुझ को तो शराब से मस्ती है और
मुझे ख़ुशी कि गिरफ़्तार मैं हुआ तेरा
आशिक़-ए-सोख़्ता-दिल ख़त्त-ए-सनम दोनों एक
क्या फ़रोग़-ए-बज़्म उस मह-रू का शब सद-रंग था
शैख़ मुझ को न डरा अपनी मुसलमानी थाम
कुफ़्र-ए-इश्क़ आया बदल मुझ मोमिन-ए-दीं-दार तक