किसी का राग़-ए-मतालिब किसी का बाग़-ए-मुराद
अवाम ख़ल्क़ को मंज़ूर है चराग़-ए-मुराद
नहीं है अपनी मुराद 'आफ़रीदी' इस के सिवा
अगरचे है भी तो साक़ी-ओ-यार अयाग़-ए-मुराद
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मातम-ए-रंज-ओ-अलम ग़म हैं बहम चारों एक
जब किसी ने आन कर दिल से मिरे पुरख़ाश की
जिस तरह कूचे में तेरे फिरते हैं हम बर-तरफ़
आशिक़-ए-सोख़्ता-दिल ख़त्त-ए-सनम दोनों एक
अब्र साँ हर-चंद रक्खा चश्म को पुर-आब हम
दर्द-ए-दिल का किसे करूँ इज़हार
मुझ को तो शराब से मस्ती है और
हम न महज़ूज़ हुए हैं किसी शय से ऐसे
इश्क़ की कोई अगर सीख ले गर मुझ से तमीज़
जी रहे या न रहे हर क़दम-ए-यार न छोड़
अपने जानान को ऐ जान इसी जान में ढूँढ
कुछ अपने काम नहीं आवे जाम-ए-जम की किताब