मुझ को तो शराब से मस्ती है और
तन क़ैद के छूटने से हस्ती है और
क़ासिम-अली दैर और हरम के अंदर
हक़ और है शौक़-ए-बुत-परस्ती है और
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Allama Iqbal
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(667) Peoples Rate This
कुफ़्र-ए-इश्क़ आया बदल मुझ मोमिन-ए-दीं-दार तक
दर्द-ए-दिल का किसे करूँ इज़हार
फेर रोज़-ए-फ़िराक़-ए-यार आया
हम न महज़ूज़ हुए हैं किसी शय से ऐसे
क्या फ़रोग़-ए-बज़्म उस मह-रू का शब सद-रंग था
शराब साक़ी-ए-कौसर से लीजो 'आफ़रीदी'
नर्गिसी चश्म दिखा कर के वो वहशत-ज़दा यार
रखता है अपने हुस्न पर वो दिल रुबा घमंड
है जुदा सज्दा की जा हिन्दू मुसलमाँ की मगर
ख़त्त-ए-आज़ादी लिखा था शोख़ ने फ़र्दा ग़लत
अपने जानान को ऐ जान इसी जान में ढूँढ
नासेहा वा'ज़ जो कहता था तुझे बिन देखे