क़ाएम चाँदपुरी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का क़ाएम चाँदपुरी (page 3)
नाम | क़ाएम चाँदपुरी |
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अंग्रेज़ी नाम | Qayem Chandpuri |
जन्म की तारीख | 1725 |
मौत की तिथि | 1794 |
जन्म स्थान | Chandpur |
हम दिवानों को बस है पोशिश से
होना था ज़िंदगी ही में मुँह शैख़ का सियाह
हाथों से दिल ओ दीदा के आया हूँ निपट तंग
हर उज़्व है दिल-फ़रेब तेरा
हर तरफ़ ज़र्फ़-ए-वज़ू भरते हैं ज़ाहिद हुई सुब्ह
हर दम आने से मैं भी हूँ नादिम
गिर्या तो 'क़ाएम' थमा मिज़्गाँ अभी होंगे न ख़ुश्क
गर्म कर दे तू टुक आग़ोश में आ
गर यही ना-साज़ी-ए-दीं है तो इक दिन शैख़-जी
गंदुमी रंग जो है दुनिया में
फ़िक्र-ए-तामीर में हूँ फिर भी मैं घर की ऐ चर्ख़
दुनिया में हम रहे तो कई दिन प इस तरह
दूँ हम-सरी में बैठ के किस ना-सज़ा के साथ
दुख़्तर-ए-रज़ तो है बेटी सी तिरे ऊपर हराम
दिल से बस हाथ उठा तू अब ऐ इश्क़
दिल को फाँसा है हर इक उज़्व की तेरे छब ने
दर्द-ए-दिल क्यूँ-कि कहूँ मैं उस से
दर्द-ए-दिल कुछ कहा नहीं जाता
डहा खड़ा है हज़ारों जगह से क़स्र-ए-वजूद
चाहिए आदमी हो बार-ए-तअल्लुक़ से बरी
चाहें हैं ये हम भी कि रहे पाक मोहब्बत
बिना थी ऐश-ए-जहाँ की तमाम ग़फ़लत पर
बाँग-ए-मस्जिद से कब उस को सर-ए-मानूसी है
बड़ न कह बात को तीं हज़रत-ए-'क़ाएम' की कि वो
बा'द ख़त आने के उस से था वफ़ा का एहतिमाल
ऐ इश्क़ मिरे दोश पे तू बोझ रख अपना
अहल-ए-मस्जिद ने जो काफ़िर मुझे समझा तो क्या
आगे मिरे न ग़ैर से गो तुम ने बात की
आ ऐ 'असर' मुलाज़िम-ए-सरकार-ए-गिर्या हो
ज़ाहिद दर-ए-मस्जिद पे ख़राबात की तू ने