शैख़-जी क्यूँकि मआसी से बचें हम कि गुनाह
इर्स है अपनी हम आदम के अगर पोते हैं
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जिस को हस्ती ओ अदम जानते हैं
मिरा जी गो तुझे प्यारा नहीं है
मैं दिवाना हूँ सदा का मुझे मत क़ैद करो
दर्द-ए-दिल क्यूँ-कि कहूँ मैं उस से
आओ कुछ शग़्ल करें बैठे हैं उर्यां इतने
चाहिए आदमी हो बार-ए-तअल्लुक़ से बरी
दुर्द पी लेते हैं और दाग़ पचा जाते हैं
बिना थी ऐश-ए-जहाँ की तमाम ग़फ़लत पर
दिल से बस हाथ उठा तू अब ऐ इश्क़
क़ाज़ी ख़बर ले मय को भी लिक्खा है वाँ मुबाह
फिर के जो वो शोख़ नज़र कर गया
जूँ शम्अ दम-ए-सुब्ह मैं याँ से सफ़री हूँ