याँ तलक ख़ुश हूँ अमारिद से कि ऐ रब्ब-ए-करीम
काश दे हूर के बदले भी तू ग़िल्माँ मुझ को
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'क़ाएम' मैं रेख़्ता को दिया ख़िलअत-ए-क़ुबूल
गिर्या तो 'क़ाएम' थमा मिज़्गाँ अभी होंगे न ख़ुश्क
तरफ़ ने बंद किया है हर इक तरफ़ से तुझे
हम दिवानों को बस है पोशिश से
आतिश-ए-तब ने की है ताब शुरूअ
मोहतसिब से सलाह कीजिएगा
गंदुमी रंग जो है दुनिया में
ता-चंद सुख़न-साज़ी-ए-नैरंग-ए-ख़राबात
दूँ हम-सरी में बैठ के किस ना-सज़ा के साथ
आवे ख़िज़ाँ चमन की तरफ़ गर मैं रू करूँ
क़त्ल पे तेरे मुझे कद चाहिए
जो कोई दर पे तिरे बैठे हैं