राहत इंदौरी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का राहत इंदौरी

राहत इंदौरी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का राहत इंदौरी
नामराहत इंदौरी
अंग्रेज़ी नामRahat Indori
जन्म की तारीख1950
जन्म स्थानIndore

ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे

ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदन

वो चाहता था कि कासा ख़रीद ले मेरा

उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो

सूरज सितारे चाँद मिरे सात में रहे

शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम

शहर क्या देखें कि हर मंज़र में जाले पड़ गए

रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है

रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं

नए किरदार आते जा रहे हैं

न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा

मिरी ख़्वाहिश है कि आँगन में न दीवार उठे

मज़ा चखा के ही माना हूँ मैं भी दुनिया को

मैं ने अपनी ख़ुश्क आँखों से लहू छलका दिया

मैं पर्बतों से लड़ता रहा और चंद लोग

मैं आख़िर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता

मैं आ कर दुश्मनों में बस गया हूँ

ख़याल था कि ये पथराव रोक दें चल कर

हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे

घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया

एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तो

दोस्ती जब किसी से की जाए

कॉलेज के सब बच्चे चुप हैं काग़ज़ की इक नाव लिए

बोतलें खोल कर तो पी बरसों

बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए

बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर

अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है

आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो

ज़िंदगी को ज़ख़्म की लज़्ज़त से मत महरूम कर

ज़िंदगी की हर कहानी बे-असर हो जाएगी

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