राहत इंदौरी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का राहत इंदौरी (page 3)
नाम | राहत इंदौरी |
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अंग्रेज़ी नाम | Rahat Indori |
जन्म की तारीख | 1950 |
जन्म स्थान | Indore |
लोग हर मोड़ पे रुक रुक के सँभलते क्यूँ हैं
काली रातों को भी रंगीन कहा है मैं ने
कहीं अकेले में मिल कर झिंझोड़ दूँगा उसे
कभी दिमाग़ कभी दिल कभी नज़र में रहो
काम सब ग़ैर-ज़रूरी हैं जो सब करते हैं
जो ये हर-सू फ़लक मंज़र खड़े हैं
जो मंसबों के पुजारी पहन के आते हैं
जब कभी फूलों ने ख़ुश्बू की तिजारत की है
जा के ये कह दे कोई शोलों से चिंगारी से
इसे सामान-ए-सफ़र जान ये जुगनू रख ले
हम ने ख़ुद अपनी रहनुमाई की
हों लाख ज़ुल्म मगर बद-दुआ' नहीं देंगे
हौसले ज़िंदगी के देखते हैं
हाथ ख़ाली हैं तिरे शहर से जाते जाते
घर से ये सोच के निकला हूँ कि मर जाना है
फ़ैसले लम्हात के नस्लों पे भारी हो गए
दोस्ती जब किसी से की जाए
दिलों में आग लबों पर गुलाब रखते हैं
चेहरों की धूप आँखों की गहराई ले गया
चराग़ों को उछाला जा रहा है
चराग़ों का घराना चल रहा है
चमकते लफ़्ज़ सितारों से छीन लाए हैं
बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए
बैठे बैठे कोई ख़याल आया
बैर दुनिया से क़बीले से लड़ाई लेते
अपने दीवार-ओ-दर से पूछते हैं
अंधेरे चारों तरफ़ साएँ साएँ करने लगे
अंदर का ज़हर चूम लिया धुल के आ गए
अजनबी ख़्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ
अब अपनी रूह के छालों का कुछ हिसाब करूँ