Ghazals of Rahat Indori

Ghazals of Rahat Indori
नामराहत इंदौरी
अंग्रेज़ी नामRahat Indori
जन्म की तारीख1950
जन्म स्थानIndore

ज़िंदगी को ज़ख़्म की लज़्ज़त से मत महरूम कर

ज़िंदगी की हर कहानी बे-असर हो जाएगी

यूँ सदा देते हुए तेरे ख़याल आते हैं

ये सर्द रातें भी बन कर अभी धुआँ उड़ जाएँ

ये ख़ाक-ज़ादे जो रहते हैं बे-ज़बान पड़े

वो इक इक बात पे रोने लगा था

उठी निगाह तो अपने ही रू-ब-रू हम थे

उसे अब के वफ़ाओं से गुज़र जाने की जल्दी थी

तुम्हारे नाम पर मैं ने हर आफ़त सर पे रक्खी थी

तेरी हर बात मोहब्बत में गवारा कर के

सिसकती रुत को महकता गुलाब कर दूँगा

सिर्फ़ सच और झूट की मीज़ान में रक्खे रहे

सिर्फ़ ख़ंजर ही नहीं आँखों में पानी चाहिए

शाम ने जब पलकों पे आतिश-दान लिया

शजर हैं अब समर-आसार मेरे

शहर क्या देखें कि हर मंज़र में जाले पड़ गए

सवाल घर नहीं बुनियाद पर उठाया है

साथ मंज़िल थी मगर ख़ौफ़-ओ-ख़तर ऐसा था

सर पर सात आकाश ज़मीं पर सात समुंदर बिखरे हैं

सबब वो पूछ रहे हैं उदास होने का

सब को रुस्वा बारी बारी किया करो

रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है

रात की धड़कन जब तक जारी रहती है

पुराने दाँव पर हर दिन नए आँसू लगाता है

नदी ने धूप से क्या कह दिया रवानी में

न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा

मुझे डुबो के बहुत शर्मसार रहती है

मोहब्बतों के सफ़र पर निकल के देखूँगा

मेरे कारोबार में सब ने बड़ी इमदाद की

मेरे अश्कों ने कई आँखों में जल-थल कर दिया

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