आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
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मैं ने अपनी ख़ुश्क आँखों से लहू छलका दिया
उठी निगाह तो अपने ही रू-ब-रू हम थे
शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम
चराग़ों को उछाला जा रहा है
लोग हर मोड़ पे रुक रुक के सँभलते क्यूँ हैं
सिसकती रुत को महकता गुलाब कर दूँगा
अंदर का ज़हर चूम लिया धुल के आ गए
दिलों में आग लबों पर गुलाब रखते हैं
मैं आ कर दुश्मनों में बस गया हूँ
चराग़ों का घराना चल रहा है
सिर्फ़ ख़ंजर ही नहीं आँखों में पानी चाहिए
चमकते लफ़्ज़ सितारों से छीन लाए हैं