बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Wasi Shah
Anwar Masood
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1457) Peoples Rate This
मैं आ कर दुश्मनों में बस गया हूँ
सूरज सितारे चाँद मिरे सात में रहे
काम सब ग़ैर-ज़रूरी हैं जो सब करते हैं
कॉलेज के सब बच्चे चुप हैं काग़ज़ की इक नाव लिए
साथ मंज़िल थी मगर ख़ौफ़-ओ-ख़तर ऐसा था
नदी ने धूप से क्या कह दिया रवानी में
दोस्ती जब किसी से की जाए
काली रातों को भी रंगीन कहा है मैं ने
घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया
सिसकती रुत को महकता गुलाब कर दूँगा
चराग़ों का घराना चल रहा है
न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा