बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए
मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए
Wasi Shah
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Gulzar
Rahat Indori
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1220) Peoples Rate This
उठी निगाह तो अपने ही रू-ब-रू हम थे
अपने दीवार-ओ-दर से पूछते हैं
अब अपनी रूह के छालों का कुछ हिसाब करूँ
कहीं अकेले में मिल कर झिंझोड़ दूँगा उसे
रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं
मैं लाख कह दूँ कि आकाश हूँ ज़मीं हूँ मैं
मैं आख़िर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता
रात की धड़कन जब तक जारी रहती है
मेरे कारोबार में सब ने बड़ी इमदाद की
मैं पर्बतों से लड़ता रहा और चंद लोग
काली रातों को भी रंगीन कहा है मैं ने